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फास्टर नोट्स-2018 बी. ए. प्रथम वर्ष शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र

यूनिवर्सिटी फास्टर नोट्स

प्रकाशक : कानपुर पब्लिशिंग होम प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 307
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष (सेमेस्टर-1) शिक्षाशास्त्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-प्रश्नोत्तर

प्रश्न- शिक्षा की प्रकृति की विवेचना कीजिए।

अथवा

शिक्षा विज्ञान है या कला या दोनों? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

शिक्षा की प्रकृति या स्वरूप
(Nature of Education)

सामाजिक विद्वानों की भांति शिक्षा के सम्बन्ध में यह प्रकट होता है कि शिक्षा का स्वरूप या प्रकृति क्या है? शिक्षा कला है या विज्ञान या फिर शिक्षा विज्ञान या कला दोनों ही है, अतः यह विचारणीय है -
शिक्षा विज्ञान के रूप में (Education as a Science) - शिक्षा एक विज्ञान है। परन्तु विज्ञान क्या है? विज्ञान के इसी अर्थ को स्पष्ट करते हुए जी. पी. गूच ने लिखा कि - "विज्ञान घटना विशेष के कारण और प्रभाव के मध्य सम्बन्ध विषयक ज्ञान का क्रमबद्ध समूह है।' अतः विज्ञान ज्ञान की एक विशिष्ट शाखा है जिसमें घटना विशेष के कारण तथा प्रभाव के सम्बन्ध में निरीक्षणों एवं परीक्षणों के आधार पर क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है परन्तु जब कभी भी यह प्रश्न उठता है कि शिक्षा को विज्ञान माना जाये या नहीं। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित दो विचारधाराएँ हैं
(A) शिक्षा विज्ञान है - इसके सम्बन्ध में निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किए गए -
(i) शिक्षा सामान्य तथ्यों से परिपूर्ण है।
(ii) शैक्षिक ज्ञान क्रमबद्ध तथा सुव्यवस्थित है।
(iii) शिक्षा का वस्तुनिष्ठ अध्ययन विज्ञान की तरह धर्म व नैतिकता से प्रभावित नहीं है।
(B) शिक्षा विज्ञान नहीं है इसके सम्बन्ध में निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किए गए -
(i) विज्ञान में धर्म व नैतिकता की न तो कोई आवश्यकता है और न ही उसकी कोई उपयोगिता जबकि शिक्षा में नैतिकता का विशेष महत्व है।
(ii) विज्ञान में सामान्यीकरण होता है परन्तु शिक्षा में सामान्यीकरण का अभाव होता है।
(iii) विज्ञान किसी भी लक्ष्य का क्रमबद्ध ज्ञान है परन्तु शिक्षा में तथ्य के क्रमबद्ध ज्ञान का अभाव होता है।
शिक्षा कला के रूप में (Education as an Art) - शिक्षा एक कला है परन्तु कला क्या है? कला ज्ञान में ही नहीं कौशल में भी होती है। कला के अर्थ को स्पष्ट करते हुए शिक्षा शब्द कोष के अन्तर्गत लिखा गया है -
'कला सौन्दर्यानुभूति में सहभागिता अथवा प्रवीणता की ओर लक्षित मानवीय क्रियाएँ हैं।' अतः दूसरे शब्दों में इसे कहा जा सकता है, जो विषय विशेष के उद्देश्यों की प्राप्ति के साधनों का ज्ञान कराता है, वही कला है।
अब शिक्षा को कला माना जाए या फिर नहीं तो इस सम्बन्ध में निम्नलिखित दो विरोधी विचारधाराएँ हैं
(A) शिक्षा कला है - "शिक्षा के कला होने के समर्थन में निम्न तर्क दिए गए -
(i) कलाकार हो या फिर साहित्यकार अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में साधनों पर विशेष ध्यान नहीं देता जबकि शिक्षाशास्त्री तथ्यों एवं घटनाओं के वर्णन में वस्तुनिष्ठ साधनों का उपयोग करता है।
(ii) कलाकार तथ्यों के प्रस्तुतीकरण के अन्तर्गत वास्तविकता पर विशेष रूप से ध्यान नहीं देता है जबकि शिक्षाशास्त्री के लिए वास्तविकता की अनिवार्यता होती है।
(iii) साहित्यकार या कलाकार अपने विशिष्ट ढंग से प्रकृति का अवलोकन करके उसका प्रस्तुतीकरण करता है। शिक्षाशास्त्री घटनाओं की अनुभूति अपने स्रोतों पर आधारित अपने मस्तिष्क में करता है।
इस दृष्टि के आधार पर शिक्षा एक कला है क्योंकि इसके अन्तर्गत शिक्षक अपने आदर्शों एवं विचारों के अनुरूप बालक के मानस पटल पर विभिन्न प्रकार के विचारों को अंकित करता है जिससे कि उसके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास हो सके।
(B) शिक्षा कला नहीं है - शिक्षा को वैज्ञानिक रूप प्रदान करने के लिए शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा के कलात्मक स्वरूप पर तीव्र प्रहार किए, जो कि निम्नलिखित हैं -
(i) शिक्षक पाठ्यक्रम के अनुरूप कार्य को करता है परन्तु एक लेखक या फिर मूर्तिकार पर इतने प्रतिबन्ध आरोपित नहीं किए जा सकते हैं।
(ii) शिक्षा को विशुद्ध कला नहीं माना जाता क्योंकि शिक्षक एक कलाकार या साहित्यकार की भांति अपने कार्य में मुक्त नहीं रहता।

शिक्षा विज्ञान एवं कला दोनों है
(Education is Both Science & Art)

शिक्षा न केवल विज्ञान है और न मात्र कला बल्कि यह विज्ञान व कला दोनों है। दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि शिक्षा विज्ञान व कला दोनों का ही समन्वित अध्ययन है। यह कहना यहाँ पर बिल्कुल उचित होगा कि जब शिक्षा सत्य की खोज करती है तब वह विज्ञान है और उन तथ्यों के प्रस्तुतीकरण के समय वह कला है।
शिक्षा विज्ञान है क्योंकि इसका अपना पृथक शास्त्र है, पृथक सिद्धान्त हैं तथा पृथक इतिहास है और ज्ञान की शाखाओं के अन्तर्गत इसका अपना एक स्वतन्त्र अस्तित्व है। हमें इस तथ्य को बिल्कुल भी नहीं भूलना चाहिए कि जब तक सिद्धान्तों को व्यावहारिक आवरण नहीं देते तब तक हम एक शिक्षक नहीं बन सकते। अतः शिक्षा का प्रायोगिक रूप अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। जहाँ पर सिद्धान्त एक वैज्ञानिक तथ्य है वहीं पर उस सिद्धान्त को व्यवहृत बनाना एक प्रकार का कलात्मक पक्ष है, इसलिए इन दोनों पक्षों के संयोजन के बिना शिक्षा का विकास सम्भव नहीं है क्योंकि एक पक्ष के बिना दूसरा पक्ष निरर्थक हो जाता है अतः शिक्षा कला व विज्ञान दोनों है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वैदिक काल में गुरुओं के शिष्यों के प्रति उत्तरदायित्वों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा में गुरु-शिष्य के परस्पर सम्बन्धों का विवेचनात्मक वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- वैदिक शिक्षा व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में सुधार हेतु यह किस सीमा तक प्रासंगिक है?
  4. प्रश्न- वैदिक शिक्षा की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा के कम से कम पाँच महत्त्वपूर्ण आदर्शों का उल्लेख कीजिए और आधुनिक भारतीय शिक्षा के लिए उनकी उपयोगिता बताइए।
  6. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे? वैदिक काल में प्रचलित शिक्षा के मुख्य गुण एवं दोष बताइए।
  7. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
  8. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के प्रमुख गुण बताइए।
  9. प्रश्न- प्राचीन काल में शिक्षा से क्या अभिप्राय था? शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे?
  10. प्रश्न- वैदिककालीन उच्च शिक्षा का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा में प्रचलित समावर्तन और उपनयन संस्कारों का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  12. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान का विकास तथा आध्यात्मिक उन्नति करना था। स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- आधुनिक काल में प्राचीन वैदिककालीन शिक्षा के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- वैदिक शिक्षा में कक्षा नायकीय प्रणाली के महत्व की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- वैदिक कालीन शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं? शिक्षा के विभिन्न सम्प्रत्ययों का उल्लेख करते हुए उसके वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ लिखिए।
  18. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
  19. प्रश्न- शिक्षा के दार्शनिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  20. प्रश्न- शिक्षा के समाजशास्त्रीय सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- शिक्षा के राजनीतिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- शिक्षा के आर्थिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  23. प्रश्न- शिक्षा के मनोवैज्ञानिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- शिक्षा के वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- क्या मापन एवं मूल्यांकन शिक्षा का अंग है?
  26. प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए। आपको जो अब तक ज्ञात परिभाषाएँ हैं उनमें से कौन-सी आपकी राय में सर्वाधिक स्वीकार्य है और क्यों?
  27. प्रश्न- शिक्षा से तुम क्या समझते हो? शिक्षा की परिभाषाएँ लिखिए तथा उसकी विशेषताएँ बताइए।
  28. प्रश्न- शिक्षा का संकीर्ण तथा विस्तृत अर्थ बताइए तथा स्पष्ट कीजिए कि शिक्षा क्या है?
  29. प्रश्न- शिक्षा का 'शाब्दिक अर्थ बताइए।
  30. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसकी अपने शब्दों में परिभाषा दीजिए।
  31. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
  32. प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
  33. प्रश्न- शिक्षा की दो परिभाषाएँ लिखिए।
  34. प्रश्न- शिक्षा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- आपके अनुसार शिक्षा की सर्वाधिक स्वीकार्य परिभाषा कौन-सी है और क्यों?
  36. प्रश्न- 'शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है।' जॉन डीवी के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  37. प्रश्न- 'शिक्षा भावी जीवन की तैयारी मात्र नहीं है, वरन् जीवन-यापन की प्रक्रिया है। जॉन डीवी के इस कथन को उदाहरणों से स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- शिक्षा विज्ञान है या कला या दोनों? स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- शिक्षा की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ को स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- शिक्षा और साक्षरता पर संक्षिप्त टिप्पणी दीजिए। इन दोनों में अन्तर व सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
  43. प्रश्न- शिक्षण और प्रशिक्षण के बारे में प्रकाश डालिए।
  44. प्रश्न- विद्या, ज्ञान, शिक्षण प्रशिक्षण बनाम शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- विद्या और ज्ञान में अन्तर समझाइए।
  46. प्रश्न- शिक्षा और प्रशिक्षण के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।

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